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यु॒योता॒ शरु॑म॒स्मदाँ आदि॑त्यास उ॒ताम॑तिम् । ऋध॒ग्द्वेष॑: कृणुत विश्ववेदसः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yuyotā śarum asmad ām̐ ādityāsa utāmatim | ṛdhag dveṣaḥ kṛṇuta viśvavedasaḥ ||

पद पाठ

यु॒योत॑ । शरु॑म् । अ॒स्मत् । आ । आदि॑त्यासः । उ॒त । अम॑तिम् । ऋध॑क् । द्वेषः॑ । कृ॒णु॒त॒ । वि॒श्व॒ऽवे॒द॒सः॒ ॥ ८.१८.११

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:18» मन्त्र:11 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:27» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:11


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शिव शंकर शर्मा

पुनः वही विषय आ रहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - (आदित्यासः) हे आचार्य्यो ! आप (अस्मद्+आ) हम लोगों के समीप से (शरुम्) हिंसक को (युयोत) पृथक् कीजिये। (उत) और (अमतिम्) मूर्खता या दुर्बुद्धि या दुर्भिक्ष आदि को भी दूर कीजिये (विश्ववेदसः) हे सर्वज्ञ आदित्यों ! (द्वेषः) द्वेष करनेवालों को भी (ऋधग्+कृणुत) पृथक् कीजिये ॥११॥
भावार्थभाषाः - आचार्य्य और ज्ञानी पुरुषों को उचित है कि वे जहाँ रहें, वहाँ अज्ञान का नाश और सुख की वृद्धि किया करें ॥११॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (आदित्यासः) हे विद्वानो ! (अस्मत्, आ) आप हमसे (शरुम्, उत, अमतिम्) हिंसक और अज्ञान को (युयोत) पृथक् करें (विश्ववेदसः)ठे सर्वज्ञाता ! (द्वेषः) द्वेष रखनेवालों को (ऋधक्, कृणुत) अलग करें ॥११॥
भावार्थभाषाः - हे सब विद्याओं के ज्ञाता विद्वान् पुरुषो ! आप विद्याप्रचार द्वारा हमारे अज्ञान को निवृत्त करें, ताकि हम हिंसक स्वभाववाले न होकर मित्र हों, न हम किसी से द्वेष करें और न हमारे द्वेषी उत्पन्न हों अर्थात् द्वेष करनेवालों को हमसे सदा पृथक् करें ॥११॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनस्तदनुवर्त्तते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे आदित्यासः=आदित्या बुद्धिपुत्रा आचार्य्याः। यूयम्। अस्मद्=अस्मत्तः। शरुम्=हिंसकम्। युयोत=पृथक् कुरुत। उत=अपि च। अमतिम्=दुर्मतिं मूर्खतां वा। युयोत। हे विश्ववेदसः=विश्वज्ञानाः सर्वज्ञाः। द्वेषः=द्वेष्टॄन्। ऋधक्=पृथक्। कृणुत=कुरुत ॥११॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (आदित्यासः) हे विद्वांसः ! (अस्मत्, आ) भवन्तोऽस्मत् (शरुम्, उत, अमतिम्) हिंसकम् अज्ञानं च (युयोत) पृथक् कुरुत (विश्ववेदसः) हे सर्वज्ञाः ! (द्वेषः) द्वेष्टॄन् (ऋधक्, कृणुत) पृथक्कुरुत ॥११॥